अमरीकी जिंदगी के रंग
अमरीका अनेक विरोधाभासों का देश है। इसे दूर से देखना और पास जाकर देखना दो अलग देशों को देखना है। अमरीका में जीवन बिताना एक भारतीय प्रौढ या वृद्ध के लिए बहुत ही मुश्किल है, यदि उसके पास कोई काम न हो। उसके लिए समय बिताना या काटना आसान नहीं है। सप्ताह में पांच दिन जब सारा अमरीका काम के पीछे पागल रहता है, बाहर से अमरीका में अपने परिवार के साथ रहने आया आदमी बेहद तडपन महसूस करता है। अच्छी जिन्दगी के सपने बिखर जाते हैं और आप सोमवार से शुक्रवार तक केवल किताबें पढकर, टेलीविजन देखकर ही अपना समय व्यतीत कर सकते हैं। परिवार में हर एक सदस्य पूरी तरह काम के दिनों में व्यस्त रहता है और आगन्तुक को अकेलापन चुभने लगता है। ये पांच दिन यातनाओं के दिन होते हैं जो आप घर की चारदीवारी में कैद रहकर बिताते हैं। आपकी अपनी कार न हो तो आप कहीं नहीं जा सकते और बाहर से आने के कारण न आपके पास कार होती है, न ड्राइविंग लाइसेंस होता है, न अन्य कोई साधन जिसका उपयोग आप कर सकें। अमरीका के ज्यादातर भागों में सार्वजनिक बसें भी नहीं हैं, रेलें भी बहुत कम हैं और बहुत कम जगह पर हैं।
इस अमरीकी जीवन में एक अजीब सूनापन है। वहां पडोस नाम की कोई चीज नहीं है। सब कुछ औपचारिक है। बिना पहले से समय लिए आप किसी से मिलने नहीं जा सकते और दुर्भाग्यवश यदि चले जाएं तो आपका मित्र भी आपसे बात करने से इनकार कर देगा। एक जान-पहचान वाले, जो मेरी तरह ही भारत से पहली बार अमरीका गए थे, रोज घूमने जाते थे। तीन माह तक लगातार उनके साथ एक हम उम्र व्यक्ति घूमते थे और दोनों में अच्छा सौहार्द उत्पन्न हो गया था। वह व्यक्ति तीन-चार दिन घूमने नहीं आये तो मेरे जान-पहचान वाले सज्जन ने सोचा कि शायद बीमार हो गए हैं। उनका घर पास ही था। इसलिए वे उनकी तबीयत पूछने उनके घर चले गए। उनके साथ घूमने वाले मित्र ने दरवाजा खोला और यह कहकर वापस बंद कर दिया कि आप पहले से समय लेकर नहीं आए हैं। आदमी से ज्यादा महत्वपूर्ण वहां नियमितता है। इस तरह का एक अनुभव मुझे भी हुआ। मुम्बई से आकर अमरीका में बसे एक डॉक्टर ने मुझे पढने के लिए कुछ किताबें तथा मैग्जीन दी थी। करीब पन्द्रह दिन बाद मैंने उनसे सम्पर्क किया और पूछा कि किताबें लौटाने कब आऊं। उस वक्त शाम के पांच बज रहे थे। उन्होंने कहा कि आप साढे आठ बजे फोन करके पूछ लें। मैंने फिर फोन किया कि आप समय बता दें। उन्होंने कहा कि आज तो मिलना सम्भव नहीं होगा। चार-पांच दिन बाद आप फिर बात कर लें। मैंने करीब सात दिन बाद फिर सम्पर्क किया। वह फिर समय नहीं दे पाये। बिना समय लिए जाना उचित नहीं था। वह दो मकान छोडकर ही रहते थे। इसलिए उनके यहां पैदल जाने में ज्यादा से ज्यादा दो मिनट लगते थे। महीने भर चेष्टा करने के बावजूद मैं किताबें व मैग्जीन नहीं लौटा पाया। भारत वापस लौटते वक्त मैं उनकी पुस्तकें व मैग्जीन अपनी बेटी को दे आया कि तुम उनसे समय लेकर लौटा देना। मुझे विश्वास है कि वह भारतीय मूल के डॉक्टर अवश्य बुरा मानते यदि मैं उनके घर पर बिना टाइम लिए दस्तक देता। अपने-अपने मकान हैं, अपनी-अपनी सुविधाएं हैं, अपनी-अपनी प्राथमिकताएं हैं, अपने-अपने प्रोग्राम हैं, अपने-अपने काम का समय है। काम के दिनों में आप आदमी की शक्ल देखने के लिए तरस जाएंगे। बस आती-जाती कारें नजर आएंगी। पडोस को न जानने का मर्ज मुम्बई में भी है, पर वहां आदमी तो, भागता हुआ ही सही, दिखाई देता है। मेरी बेटी का बंगला टेनेसी राज्य की राजधानी, अमरीका की संगीत राजधानी, नेशविल के एक पॉश इलाके में है। आगे दूब है, पीछे दूब है। आगे भी बाग है, पीछे पेडों की श्ृंखला है। सारा बंगला प्रकृति की गोद में बसा कुछ ऊंचाई पर है। कोई शोर नहीं है। कोई शोर करने वाला भी नहीं है। कोई शोर सुनने वाला भी नहीं है। बंगले दूर-दूर बसे हुए हैं। लकडी और कांच के हैं। अमरीका में ज्यादातर घर लकडी और कांच के होते हैं। कहीं-कहीं ईट या पत्थर के दर्शन भी होते हैं। ज्यादातर घर सप्ताह में पांच दिन दिनभर सुनसान रहते हैं। चोरी डकैती होती है, पर बहुत कम। न्यूयार्क, शिकागो, जैसे बडे शहरों में काफी अपराध होते हैं, पर छोटे शहरों, कस्बों और गांवों का जीवन साधारणत: सुरक्षित है। अब गैर कानूनी प्रवासियों ने सुख चैन में कुछ सेंध लगाई है। हमारे दिमाग में अमरीका में जुर्म की कहानियां अमरीका प्रवास से पहले गूंजती रहती थी। वहां आकर पता लगा कि जुर्म कुछ इलाकों में ही अधिक होते हैं। एक बात ऎसी है और वह यह कि अमरीका में बन्दूक सब्जी की तरह मिलती है। हर जगह बिना लाइसेंस गन मिल जाती है। इससे अपराध बढ रहे हैं। अमरीका एक नया देश है, पर उसमें सांस्कृतिक चेतना प्रचुर मात्रा में है। यही चेतना उसे एक राष्ट्र के रू प में मरने नहीं देती। अमरीका में हर पुस्तकालय एक साहित्यक केन्द्र है और पुस्तकालयों की संख्या काफी है। करीब-करीब हर शहर में एक बडा सार्वजनिक पुस्तकालय है। पाठकों की भीड पुस्तकालयों में लगी रहती है। हर शहर और कस्बों में एक से ज्यादा संग्रहालय है। संग्रहालय स्थापना अमरीका में शौक भी है, गर्व का विषय भी है, ज्ञान का भण्डार भी है। संग्रहालय व्यक्तिगत भी है, पब्लिक भी है। अमरीका में बडी संख्या में सरकारी स्कूल हैं। हर क्षेत्र में अपना अलग स्कूल होता है। हर स्कूल की काउन्टी में, शहर में, कस्बे में, राज्य में, रैकिंग होती है। सरकारी या काउंटी स्कूल में कोई फीस नहीं लगती। कॉलेज से पहले की सारी शिक्षा नि:शुल्क होती है। हर स्कूल में खेलकूद के पूरे साधन होते हैं। हर स्कूल बहुत भव्य होता है। हर स्कूल में, स्कूल के निर्धारित क्षेत्र के बच्चे ही पढ सकते हैं। यदि आप दूसरे स्कूल में बच्चे को पढाना चाहते हैं तो आपको क्षेत्र या मोहल्ला बदलना पडेगा। इसमें कोई सिफारिश काम नहीं देती। कुछ अर्थों में अमरीकी बच्चों को स्वर्ग जैसी सुविधाएं मिलती हैं। 12 वर्ष तक के बच्चों के साथ 16 वर्ष से बडा कोई व्यक्ति होना जरू री है चाहे बच्चा घर में हो या कार में या अन्य कहीं। इसीलिए बेबी सिटर का पैसा खर्च करना पडता है। मेरी दोहिती बेबी सिटर का काम छुियों में करती थी। एक घंटे के दस डॉलर मिलता था। बारह साल के कम उम्र के बच्चे को अकेला छोडने पर मां-बाप या अभिभावक का चालान हो जाता है, कभी-कभी जेल भी हो जाती है। स्कूल बस को कोई ओवरटेक नहीं कर सकता। गवर्नर या मेयर भी नहीं। बच्चों को डांटना भी महंगा पड सकता है। मारना तो जुर्म ही है। नेशवील में जगह-जगह मॉल बने हुए हैं। चाहे जब चाहे जितनी खरीददारी करिये। एक उपभोक्ता समाज का नजारा आपको हर जगह नजर आता है। अमरीकी लोग खाने के बडे शौकीन हैं और झूठा फेंकने के भी। खाते भी जरू रत से ज्यादा हैं। ज्यादा वजन के लोग आपको हर जगह मिलेंगे।
कुछ कमियों और गलतियों के बावजूद अमरीका की शक्ति उसकी मजबूत जनता में, उसके देश प्रेम में निहित है। अमरीका एक है, एकता की भावना बहुत ही तीव्र है। इसलिए वह हमसे भिन्न है। भारत में जगह-जगह छेद हो रहे हैं। धर्मान्धता और सांप्रदायिकता, क्षेत्रीयता, व्यक्तिवाद, क्षुद्र दृष्टिकोण प्रभावी हो रहे हैं। अमरीका में ये सभी दुर्गुण न के बराबर हैं। अमरीकी जनता इसलिए सारे संकट को जल्द पार
कर लेगी।
कुछ कमियों और गलतियों के बावजूद अमरीका की शक्ति उसकी मजबूत जनता में, उसके देश प्रेम में निहित है। अमरीका एक है, एकता की भावना बहुत ही तीव्र है। इसलिए वह हमसे भिन्न है
उपध्यान चन्द्र कोचर
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