नई दिल्ली। डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में तेज गिरावट से देश की क्रेडिट प्रोफाइल बिगड़ने की आशंका पैदा हो गई है। मई के पहले हफ्ते के बाद से अब तक डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में करीब आठ फीसद की कमी आ चुकी है। अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारतीय मुद्रा की कमजोरी पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि रुपये में यह गिरावट अर्थव्यवस्था के बुनियादी तौर पर कमजोर होने से आई है।
साथ ही देश पर विदेशी कर्ज का बोझ भी बढ़ रहा है। तेल कंपनियों की मांग और सोमवार को भी रुपया लुढ़कते हुए 59.83 तक जा पहुंचा। मगर बाद में बैंकों की ओर से डॉलर की बिक्री ने हालात सुधारे और एक डॉलर की कीमत 59.68 रुपये पर जाकर रुकी। कमजोर रुपया देश की कर्ज लेने की साख को बिगाड़ रहा है। हालांकि, अभी ऐसी स्थिति नहीं आई है जिससे रेटिंग एजेंसियों को भारत की रेटिंग की समीक्षा की आवश्यकता हो। शेयर बाजार की गिरावट भी रुपये की कीमत को लगातार कमजोर कर रही है। महीने के अंत में तेल कंपनियों की तरफ से डॉलर की मांग ने अमेरिकी मुद्रा को मजबूत किया है।
वहीं, अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेतों के बाद विदेशी संस्थागत निवेशक ख्एफआइआइ, लगातार अपना निवेश भारतीय बाजारों से निकाल रहे हैं। जून में ही अब तक एफआइआइ घरेलू इक्विटी और कर्ज बाजार से पांच अरब डॉलर निकाल चुके हैं। सोमवार को रिजर्व बैंक की सलाह पर सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ बैंकों ने डॉलर बाजार में बेचे। इससे एक डॉलर की कीमत 59.83 रुपये से घटकर 59.68 रुपये तक आ गई।
मैरिल लिंच का मानना है कि रुपये की कीमत को और गिरने से रोकने के लिए रिजर्व बैंक अभी 30 अरब डॉलर तक की बिक्री कर सकता है। उधर इंडिया फारेक्स एडवाइजर्स के सीईओ अभिषेक गोयनका का मानना है कि रुपया डॉलर के मुकाबले फिर तलहटी के करीब पहुंच रहा है। शेयर बाजार से विदेशी निवेश की निकासी इसकी स्थिति और कमजोर कर रही है। सस्ता रुपया घरेलू आयात खासतौर पर कच्चे तेल के आयात को महंगा करेगा और खजाने पर दबाव बनाएगा।
इसके चलते चालू खाते का घाटा खतरनाक स्तर तक जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने अब रुपये की कीमत में और कमी का अनुमान लगाना शुरू कर दिया है। अंतरराष्ट्रीय ब्रोकिंग फर्म स्टैंडर्ड चार्टर्ड ने इस साल के लिए एक डॉलर की कीमत का अनुमान 53 रुपये से बढ़ाकर 60.5 रुपये कर दिया है।
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