बस्तों पर खून की बूंदें
नवभारत टाइम्स | Apr 11, 2014, 01.00AM IST
स्कूली हिंसा से घिरे अमेरिका में बुधवार को ऐसे ही एक छात्र ने अंधाधुंध चाकूबाजी करके सबको सकते में डाल दिया। पिट्सबर्ग के एक हाईस्कूल में सुबह बच्चे रोज की तरह अपने-अपने क्लास रूम में जा रहे थे, तभी दसवीं के एक छात्र ने आसापास के बच्चों पर छुरा चलाना शुरू कर दिया। जब तक सब संभलते और उसे रोकने की कोशिश करते, वह बच्चों को घायल करता हुआ आगे हॉल की तरफ बढ़ गया। उसे काबू करने में आधा घंटा लग गया और इस दौरान वह 20 स्टूडेंट्स को घायल कर चुका था। घायल बच्चों की उम्र 14 से 17 साल के बीच बताई गई है। हालांकि पुलिस ने हमलावर को उसी समय गिरफ्तार कर लिया, लेकिन अब तक इस बारे में कोई सूचना नहीं आई है कि इस हमले के पीछे की वजहें क्या हैं।
हमले में चाकू के इस्तेमाल की पुष्टि हो चुकी है, लेकिन यह कैसा चाकू था और हमलावर के पास कैसे आया, इस बारे में भी कोई जानकारी नहीं आई है। स्कूलों में हिंसा की घटनाएं अमेरिका में खतरनाक सीमा तक बढ़ी हुई हैं। इस मामले में छुरे का इस्तेमाल जरूर थोड़ी नई बात है। अमूमन अंधाधुंध फायरिंग की घटनाएं ही सुनने में आती हैं। 2010 में हुई ऐसी ही एक घटना में पहली क्लास के 20 बच्चों सहित 6 स्कूल कर्मचारियों की मौत हो गई थी।
ऐसी घटनाएं वहां कितनी आम हो गई हैं, इसका अंदाजा इस तथ्य से होता है कि साल 2010 में वहां स्कूली मैदानों में हिंसा की 3,59,000 घटनाएं हुई थीं। इनमें 91,400 को गंभीर हिंसक घटनाओं के रूप में दर्ज किया गया। किसी भी लिहाज से देखने पर ये आंकड़े अमेरिकी समाज की भयावह तस्वीर पेश करते हैं। इसके पीछे बच्चों की परवरिश के माहौल से जुड़ी खामियां तो हैं ही, हथियारों तक उनकी आसान पहुंच का मसला भी है। लेकिन, सबसे बड़ी बात यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने हालात बेहतर बनाने के मकसद से बंदूकों की खुलेआम बिक्री पर रोक लगवाने की जो कोशिश की थी, उसपर अमेरिकी संसद रत्ती भर भी आगे नहीं बढ़ पाई है। इस गतिरोध की मुख्य वजह वहां की ताकतवर हथियार लॉबी को माना जाता है, जिसके चंदे और जिससे जुड़े वोटों का मोह कोई भी पार्टी छोड़ना नहीं चाहती।
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